Thursday, November 25, 2010

साथ तुम्हारा कितना

तुम जो साथ हमारे होते
कितने हाथ हमारे होते
दूर पहुँच से होते जो भी
बिल्कुल पास हमारे होते
माफ़ सज़ाएँ होती रहतीं
कितने जुर्म हमारे होते
बँटती समझ बराबर सबको
ऐसे न बँटवारे होते
रार नहीं तकरार नहीं तो
कितने ख़्वाब सुनहरे होते
काजल से होती यारी तो
नैना ये कजरारे होते
कदम मिला कर हमसे चलते
तुम भी अपने प्यारे होते
मिर्च मसाले न होते तो
ऐसे न चटखारे होते
पैदा न मोबाइल होता
दुखी खूब हरकारे होते
सौदे न सरकारी होते
कैसे नोट डकारे होते

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